September 17, 2008

एक शाम बच्चों के साथ

कुछ रोज पहले मै अपने पौञद्वय,अनुपम (7 साल) और राहुल (5 साल) , के साथ समुद्र के किनारे टाईलों से बने फूटपाथ पर टहल रहा था बच्चे अपने स्वभावनुसार इधर उधर दौड रहे थे उन्हे सम्हाल पाना मुझ पर भारी पड रहा था उनकी उफनती ऊर्जा को एक दिशा प्रदान करने के उद्देश्य से मैने उनहें एक खेल मे उलझाने की सोची........ मैने उनहे दूर लगे एक खम्बे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि जो बच्चा यहाँ से उस खम्बे तक बिछी टाईल्सों की सही सही गिनती पहले बतायेगा उसे ईनाम दिया जायेगा........
पहले तो ईनाम क्या होगा, इसका खुलासा करने का मुझपर जोर डाला गया....... मेरे टालमटोल करने पर दोनो ने एक सुर मे इसे मेरी साजिश करार दे दिया और फिर ऐसे किसी भी कार्य मे भाग लेने से इनकार कर दिया जिसमें होनेवाले नफे नुकसान का उन्हे स्पष्ट ग्यान न हो ........... मैं अचम्भित
था, आजकी पौध की असामयिक परिपक्वता देखकर ......... खैर मैने हथियार डालते हुए एक चाकलेट देने का भरोषा दिया, मगर ....मगर बात यहीं खत्म नही हुई...... ऊनके पसन्दिदा ब्रांड और साइज की बात तय होने के बाद ही वह मैदान में उतरे...... दौड शुरू हुई.......... पहले अनुपम आया, उसने बताया १९७ टाइल्स लगी है ........... फिर राहुल,उसने वहाँ २०३ टाइल्स लगी होने का दावा किया ....... दोनों अपने अपने दावों पर अडिग थे, कोई भी ईनाम पर अपने दावे से पिछे हटने को तैयार न था .......बहस गरमाने लगी ...... बात हाथापाई की नौबत तक आ पहुंची ......... स्तिथी को नियन्ञण से बाहर जाते देख खुद टाईल्सों को गिनने का फैसला लिया .......... सही सँख्या थी २०१ ....... दोनों गलत थे ..... चाक़लेट पर हक किसी का नही था ...... दोनों उदास होकर इधर उधर झांकने लगे ......हठात् राहुल की आखें चमकने लगी ..... उसने सर उठाकर मेरी आखों में आखें डालते हुए कहा " मगर दस का दम के नियमों के तहत जीत मेरी हुई है और आप मुझे ईनाम देने से मना नही कर सकते " ........ मै आश्चर्य से मुँह फाडे उसकी तरफ देखता रहा ....... मुझे यह कहने मे अब कोई संकोच नही कि भारत ने बहुत तरक्की कर ली है.....

2 comments:

संतोष अग्रवाल said...

जबरदस्त..मैं न कहता था आप लिखना शुरू कीजिये... गाड़ी अब अपनी रफ्तार पकड़ रही है. बस लिखना मत छोडियेगा.

Dhruva said...

dadaji, .. aap meri bhi kuch meethi harkaton ki charcha karain... please..